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इच्छामृत्यु की अवधारणा खासकर भारत में अरुणा शानबाग के केस को लेकर काफी चर्चा में रही। भारत में संविधान जीवन का अधिकार तो देता है, परंतु मृत्यु के अधिकार पर विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के प्रावधान की अवधारणा रखता है। अर्थात् भारत में जन्म लेना आपके माता-पिता की इच्छा पर और मृत्यु का वरण करना प्रकृति और विधि पर निर्भर है।
अब प्रश्न यह उठता है कि इच्छा मृत्यु की आवश्यकता क्या है? कोई इच्छा से अपना जीवन खत्म क्यों करना चाहेगा? दरअसल, यह कानून ऐसी स्थिति की कल्पना करता है जब मनुष्य के जीवन से अधिक लाभप्रद उसकी मृत्यु हो। कल्पना करिए कि कोई परिवार जो बड़ी ही मुश्किल से अपना जीवन यापन कर रहा हो, उसका कोई सदस्य किन्हीं कारणों से ऐसी स्थिति में पहुंच जाए जहां बिना चिकित्सकीय जीवन सहायक उपागम के उसे जीवित रखना संभव ना हो, तो ऐसी स्थिति में परिवार की सहमति से उपागम को हटाकर उस व्यक्ति को मृत्यु प्राप्त करा दी जाए। क्योंकि ऐसा करने से परिवार के अन्य सदस्यों पर आर्थिक व मानसिक बोझ कम होगा और वह जीवन में आगे बढ़ सकेंगे।
कानून का मंतव्य प्रथमदृष्टया स्पष्ट दिखता है कि समाज और परिवार को अनावश्यक बोझ से बचाना है। परंतु इसका दुरुपयोग भी संभव है। अब अगर कोई व्यक्ति घर के अंदर ऐसी स्थितियां पैदा कर दे कि उसका कोई संबंधी या बुजुर्ग जो अनुत्पादक तो हो पर जीवन प्रत्याशा हो, वह मरणासन्न हो जाए फिर किसी लालची डॉक्टर की सहायता से उसे विधिक मृत्यु दे दी जाए, तो इसकी जांच कैसे होगी?
यह कानून दिखने में जितना सरल है, व्यवहार में उतना ही कठिन है, फिर भारत में तो लोग चिता से भी वापस आ चुके हैं। ऐसे केस हर महीने अखबारों की सुर्खियां बने रहते हैं। ऐसे में कौन निर्णय करेगा कि यह व्यक्ति कब मरेगा, कब ठीक होगा या कभी ठीक नहीं होगा? अगर आप लोगों ने मुन्नाभाई Mbbs देखी हो तो उसमें भी आनंद नाम के पेशेंट को अस्पताल में कभी ना ठीक होने वाला घोषित कर दिया था।
अगर तब इच्छा मृत्यु का प्रावधान होता तो शायद राजकुमार हिरानी साहब इतनी बेहतरीन फिल्म न बना पाते। यह कानून विज्ञान की सर्वोच्चता पर यकीन करके बनाया गया है, परंतु हम यह क्यों भूल जाते हैं कि अभी भी बहुत कुछ है जो अनसुलझा है। इच्छामृत्यु कानून को व्यवहार में लाने में और भी कठिनाइयां हैं। भारत में डॉक्टरों की भारी कमी है, यहां स्वास्थ्य सुविधाएं ग्रामीण इलाकों में बहुत पिछड़ी हैं। यहां आप कुछ पैसे देकर मेडिकल सर्टिफिकेट, जन्म प्रमाणपत्र, मृत्यु प्रमाण पत्र बनवा सकते हैं, वहां इतने संवेदनशील कानून का क्रियान्वयन कैसे करेंगे?
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